SECONDRY MEMORY OF COMPUTER / कंप्यूटर की द्वितीयक मैमोरी

 इस पोस्ट से पहले की पोस्ट में हम कंप्यूटर की प्राथमिक मैमोरी और उसके अंतर्गत रैम तथा रोम के बारे में पढ़ चुके है ं,  इस पोस्ट में हम कंप्यूटर की द्वितीयक मैमोरी के बारें में बात करेंगें 

यह एक ऐसी मैमोरी है जिसका कार्य यूजर के निजी डेटा को स्थायी रूप से सुरक्षित रखने का होता है , कंप्यूटर पर जब भी हम कोई कार्य कर रहे होते हैं तब डैटा अस्थायी रूप से रैम मैमोरी में रहता है किंतु जैसे ही कंप्यूटर अचानक से बंद होता है , सारा डैटा नष्ट हो जाता है , ये डैटा नष्ट ना हो इस लिए ही किये गऐ कार्य को सेव करवाया जाता है, जब हम फाईल को सेव करते है तब वह डैटा सैंकडरी मैमोरी में चला जाता है जहां यह डैटा तब तक रहता है जब तक कि यूजर खुद से ही उसे मिटा ना दे।  




इस पोस्ट में यहां हम बारी बारी से सभी सैकंडरी स्टोरेज डिवाईस के बारे में बात करेंगें।




MAGNETIC TAPE :-    

 यह एक प्रमुख सिंक्वेशल एक्सेस स्टोरेज डिवाईस है जिसमें डेटा को क्रमबद्ध रूप से एक के बाद एक एक्सेस किया जा सकता है , इस तकनीक को रैंडम एक्सेस डिवाईस तकनीक के द्वारा रिप्लेस कर दिया गया है , क्योकी इनमें मैमोरी की किसी सुदुर लोकेशन पर पड़े डेटा को एक्सेस करने के लिए भी पुरी मैमोरी से होकर गुजरना पड़ता था, ओर ये पुरी प्रक्रिया में काफी समय और प्रयास व्यर्थ चला जाता था, इस प्रकार के स्टारेज का सर्वोतम उदाहरण है , आॅडियो कैसेट एवं विडियो कैसेट




                       




FLOPPY DISK :-  


इसका आविष्कार 1967 में एलन सुगर्ट द्वारा किया गया , शुरूआती फ्लाॅपी डिस्क का डायामीटर 8 इंच का था, और उसे केवल रीड किया जा सकता था, लेकिन उसके बाद आई फ्लाॅपी डिस्क को रीड राईट दोनो किया जा सकता था,  फ्लाॅपी डिस्क आमतौर पर 3 आकार में उपलब्ध है 

8 इंच ,  51/4 इंच , 3 1/2 इंच  , इन तीनों ही साईज की फ्लाॅपी की स्टोरेज क्षमता क्रमशः 80 केबी,  160 केबी , 1.44 एमबी होती है।     51/4 इंच  इंच वाली फ्लाॅपी को मिनी फ्लाॅपी कहा जाता है, 3 1/2 इंच वाली फ्लाॅपी को माइक्रोफ्लाॅपी कहा जाता है। 

मार्केट में सीडी के आने के बाद फ्लाॅपी का असतित्व लगभग समाप्त हो गया है , इसकी सबसे बड़ी वजह है फ्लाॅपी की अति न्यून स्टोरेज क्षमता , जबकि सीडी जब मार्कैट में आई तब 700 एम बी स्टोरेज क्षमता के साथ डेटा स्टोर किया जा सकता था, इतना कि जिसमे ंकई आॅडियो फाईल समा सके।




HARD DISK :-  

हाडे डिस्क की गति को आरपीएम में मापा जाता है , 
आर पी एम अर्थात रिवोलूशन प्रति मिनट , ये इस बात को बताता है हार्ड डिस्क में प्लेटर एक मिनट में कितने चक्कर काटता है, जो हार्डडिस्क में जितना अधिक आर पी एम होगा उसकी डेटा ट्रांसमिशन स्पीड उतनी ही अधिक होगी। इसका आविष्कार 13 सितंबर 1956 को आईबीएम कंपनी के द्वारा किया गया था , दूनिया की इस पहली हार्डडिस्क का वजन 1 टन से भी अधिक था, इस हार्डडिस्क में केवल 5 एमबी तक ही डैटा स्टोर किया जा सकता था।   हार्ड डिस्क के पार्ट्स निम्नानुसार है। 

1. PATA  

PATA (Parallel Advanced Technology Attachment) – ये सबसे पुराने प्रकार की हार्ड डिस्क है. इसका उपयोग पहली बार 1986 में किया गया था. PATA Hard Disk कंप्यूटर से जुड़ने के लिए ATA interface standard का उपयोग करती है. इसे पहले Integrated Drive Electronics (IDE) के रूप में संदर्भित किया जाता था.

2 SATA

SATA का पूरा नाम :Serial Advanced Technology Attachment है। SATA हार्ड डिस्क केबल पतली और फ्लेक्सिबल है। इस ड्राइव की कीमत भी है और कार्य क्षमता भी अच्छी है और ज्यादातर SATA का उपयोग PC में किया जाता है। आज कंप्यूटर और लैपटॉप में आपको इस प्रकार की हार्ड डिस्क मिलेगी।

3 SSD

             इसका पुरा नाम साॅलिड स्टेट ड्राइव होता है इस डिवाईस को वर्तमान में हार्ड डिस्क के विकल्प के रूप मे ंदेखा जा रहा है  हार्ड डिस्क एक मैकेनिकल डिवाईस होती है जिसके घिरने पर टूटने फुटने का डर रहता है , वही पर एस एस डी एक सेमीकडंक्टर डिवाईस होती है जो घिर जाने पर भी टूटती फूटती नही है। सेमीकंडक्टर वही एलिमेंट है जिसका उपयोग रैम मैमोरी , MEMORY CARD, तथा पैनड्राइव इत्यादि में प्रयोग होता है, यह SEMICONDUCTOR  डेटा ट्रांसमिशन को फास्ट बनाता है यही कारण है कि एसएसडी में डेटा ट्रांसमिशन रेट हार्ड डिस्क की तुलना में काफी अच्छी होती है।   हार्ड डिस्क आकार में मोटी एवं वजनी होती है वहीं पर एसएसडी आकार में पतली एवं वजन में हल्की होती है। यद्यपि मार्केट में तेज गति से कार्य करने वाली एस एस डी आ चुकी है फिर भी अपनी उच्च भंडारण क्षमता एवं कम कीमत के कारण हार्ड डिस्क आज भी पहली पसंद बनी हुई है। 


4. SSHD :- 

  जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है यह डिस्क ना पुरी तरह हार्ड डिस्क है और ना ही पुरी तरह साॅलिड स्टैट ड्राइव है बल्कि यह इन दोनो के संयोजन से बनी हुई है जिसमें डिस्क का कुछ भाग एस एस डी के लिए रिजर्व कर दिया जाता है वही पर एक बड़ा भाग हार्ड डिस्क के लिए छोड़ा जाता है , यूजर अपनी जो भी सिस्टम फाईल्स है जिनको फास्टली एक्सेस किया जाना बहुत जरूरी होता है उन्हे एस एस डी वाले पार्ट में स्टोर कर देता है और पर्सनल डैटा के लिए डार्ड ड्राइव वाले पार्ट को यूज कर सकता है, यह ड्राइव  एस एस डी की तुलना में सस्ती रहती है और इससे कंप्यूटर के कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है ,  हइसकी इन्ही उपयोगिता के कारण आजकल लेपटाॅप इत्यादि में इसका प्रयोग हो रहा है।  हार्ड डिस्क की तुलना में पतला होने के कारण जिन लेपटाॅप में इनका प्रयोग होता है उनका आकार भी काफी पतला हो जाता है।

 इसका पुरा नाम साॅलिड स्टैट हार्ड ड्राइव या साॅलिड स्टैट हाईब्रिड ड्राईव भी कहते है। 

4 SCSI  :- 

 SCSI (Small Computer System Interface) SCSI एक computer interface होता है जिसे की primarily इस्तमाल किया जाता है high-speed hard drives के लिए. ऐसा इसलिए क्यूंकि SCSI support करता है faster data transfer rates वो भी commonly इस्तमाल किये जाने वाले IDE storage interface की तुलना में.



OPTICAL DISK :-  


आॅप्टिकल डिस्क का उपयोग डेटा को डिजीटल रूप में स्टोर करने में किया जाता है।  कुछ प्रमुख आॅप्टिकल डिस्क के नाम निम्न है।    






1  CD  :-    

               

 सीडी का पुरा नाम काॅंपैक्ट डिस्क होता है, इसका आविष्कार जैम्स रसेल ने किया था  यह सबसे पहली आॅप्टिकल डिस्क है इसकी स्टोरेज क्षमता 700 एमबी तक होती है , सीडी का बाजार में आना ही फ्लाॅपी डिस्क और आॅडियो कैसेट के असतित्व पर संकट बना , शुरूआती दौर मे ंसीडी का उपयोग म्युजिक कंपनीज के द्वारा किया गया  


TYPES OF CD :-  

                                 A. CD - ROM :- 

                                                              इस सीडी को केवल रीड किया जा सकता है इस प्रकार की सीडी म्यूजिक कंपनी  द्वारा अपने ग्राहकों के लिए बनाई जाती है, इस प्रकार की सीडी आज विलुप्ति के कगार पर है

                                 B.  CD - R :- 


   यहां  R से तात्पर्य रिकाॅर्डेबल से हैं अर्थात ऐसी सीडी जिसमें यूजर अपनी इच्छा से कुछ भी रिकाॅर्ड कर सके,   यह सीडी पहले से बिना किसी कंटेट  के यूजर को खाली ही उपलब्ध होती है अतः इसे ब्लेंक सीडी भी कहा जाता हे।  इस प्रकार की सीडी में  युजर तब तक डेटा को रिकाॅर्ड कर सकता है जब तक सीडी फूल ना हो जाऐ। इसमें एक बार रिकाॅर्ड हो चूके डेटा को युजर हटा नहीं  सकता ।

                                 C. CD - RW  :- 


   यहां आर डब्लयू से तात्पर्य री राइटेबल से है अर्थात एक ऐसी सीडी  जिस पर डैटा को बार बार लिखा जा सके  और मिटाया जा सके  , पहले इस प्रकार की सीडी का उपयोग एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में डेटा ट्रासंफर करने के लिए किया जाता था।

2  DVD :-   


डीवीडी को डिजीटल विडियो डिस्क अथवा डिजीटल वर्सेटाईल डिस्क भी कहा जाता है।  
 इसकी स्टोरेज क्षमता 4.7 जीबी तक होती है 
डीवीडी को  1995 में  पैनासाॅनिक , तोशिबा, तथा फिलीप्स  ने मिल कर विकसित किया 
डीवीडी का वजन  16 ग्राम तक होता है इसमे हम हाई रिजोलूशन की 2 घंटे की मूवी भी स्टोर कर सकते हैं।
इसकी अधिकतम स्टोरेज क्षमता  17.8 जीबी तक होती है 
डीवीडी को सीडी ड्राईव में नहीं चलाया जा सकता है।

3   BRD  :- 

 बीआरडी का पुरा नाम ब्लू रे डिस्क होता है।
                         यह एक उच्च क्षमता वाली आॅप्टिकल डिस्क है  , ब्लू रे डिस्क का आविष्कार  2006 में 13 बड़ी  इलेक्ट्रिानिक कंपनी  ने मिलकर किया था जिसे बीडी एसोसिएशन कहा जाता है
ब्लू रे डिस्क की स्टोरेज क्षमता सीडी तथा डीवीडी की अपेक्षा कईं गुना अधिक होती है।
इसकी सिंगल लेयर  25 जीबी तक  तथा दोनो लेयर मिलकर 50 जीबी तक डेटा स्टोर कर सकती है
सीडी और डीवीडी में जहां रेड लेसर किरणो का प्रयोग होता है वहीं पर ब्लू रे डिस्क में ब्लू लेसर किरणो का प्रयोग होता है जिसकी वेवलेंथ अपेक्षाकृत छोटी होती है जिससे बीआरडी में बहुत ही क्लोसड स्टोरड इंफाॅर्मेशन को भी पढ़ा जा सकता है
ै , बीआरडी को केवल बीआरडी प्लेयर में ही चलाया जा सकता है , लेकिन बी आर डी प्लेयर में सीडी तथा डीवीडी दोनो को चलाया जा सकता है 


USB DRIVE  :-   


                                            इसे पेन ड्राइव भी कहते है , यह एक सेमीकंडक्टर डिवाईस है जो आकार में बहुत छोटी होती है जिसे आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है, इसकी डेटा ट्रांजमिशन की गति काफी तीव्र होती है 
यूएसबी डिवाईस के आने से पहले लोग डेटा ट्रासंफर के लिए फ्लाॅपी डिस्क या री राइटेबल सीडी का  का उपयोग करते थे, लेकिन ना केवल फ्लाॅपी की भंडारण क्षमता कम थी अपितु उसकी डेटा ट्रासंफर रेट भी काफी स्लो थी, आज पेन ड्राइव की सहायता से डेटा को आसानी से एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर मे ट्रासंफर किया जा सकता है।





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